बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर कत्थक नृत्य कार्यशाला का हुआ आयोजन:--

 बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर कत्थक नृत्य कार्यशाला का हुआ आयोजन:--




                    मुज़फ्फरनगर के जड़ौदा की प्रसिद्ध शिक्षण संस्था होली चाइल्ड पब्लिक इण्टर कॉलेज के सभागार में सोमवार को बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर विद्यार्थियों की भिन्न-भिन्न रूचि को ध्यान में रखते हुए एक कथक नृत्य कार्यशाला का आयोजन किया।जिसका शुभारम्भ डॉ0 आर0एम0 तिवारी, भूतपूर्व एच0ओ0डी0 ऑफ इंग्लिश डी0ए0वी0 पी0जी0 कॉलेज, मुजफ्फरनगर, दीलिप कुमार मिश्रा मैनेजिंग डायरेक्टर, संगीत सरिता, सुघोष आर्य शिवम श्रीवास, प्रसिद्ध कथक नृतक आयुष कुमार और प्रधानाचार्य डॉ0 प्रवेन्द्र दहिया ने दीप प्रज्जवलित कर एवं भगवान बुद्ध की प्रतिमा के समक्ष पुष्प अर्पित कर किया गया। 

                                     डॉ0 आर0एम0 तिवारी ने बच्चों को बताया कि यह कत्थक नृत्य नहीं होता बल्कि कथक नृत्य होता है। कथक नृत्य की उत्पत्ति कथा से हुई है। इसलिए इसका नाम कथक नृत्य है। कथक नृतय की शुरूआत मंदिरों में कथा से हुई है। पहले पुरूष भगवान के प्रति अपने भाव को कथा सुनाते-सुनाते इसे नृत्य के रूप में प्रकट करने लगे।दिलीप मिश्रा ने सभागार में उपस्थित अतिथियों और विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए बताया कि संगीत में तरह-तरह की विधाएं है, उन्हीं में से  कथक नृत्य भी एक विधा है, जिसको आप कैरियर के रूप में भी अपना सकते है। शिवम श्रीवास्तव फाइन आर्टिस्टस, संगीतकार दीपक योगी और सुघोस आर्य ने बच्चों को भिन्न कलाओं के विषय में बताया। विपिन ने बताया कि शास्त्रीय नृत्य हमें संस्कारवान बनाता है।वहीं आज के मुख्य नृतक आयुष कुमार ने अपना परिचय देते हुए विद्यार्थियों को बताया कि शरीर के विभिन्न अंगों का संचालन करके अपने भाव को व्यक्त करना नृत्य कहलाता है। नृत्य दो प्रकार का होता है - शास्त्रीय नृत्य, लोक नृत्य जो नृत्य हमे अपने मन से करते है लोक नृत्य कहलाता है। शास्त्रीय नृत्य आठ प्रकार का होता है- कत्थन, भरतनाट्यम, कुचिपुडी, मनीपुरी, उडीसी, पणजी आदि।कथक नृत्य कथा से उत्पन्न हुआ, भगवान का वर्णन अपनी मुद्राओं से करना कथक नृत्य कहलाता है, कथक नृत्य में कथाओं की चर्चा करना ही इसका उद्देश्य था। कथक नृत्य में पदचाल को तत्काल बोलते है, इसकी आठ बीट्स होती है, ता, थे, थे, तत, आ, थे, थे, तत। नृत्य में सर्वप्रथम समस्त सृष्टि को नमस्कार किया जाता है। तक्काल के बाद हाथों के संचालन को हस्तक कहते है, इनर्में उधहस्तक, मध्यहस्तक, तलहस्तक। उसके बाद आयुष ने बताया कि कथक नृत्य के घराने होते है, घराने का मतलब घर आना। पहले अलग-अलग घराने होते थे, सभी घरानों की जयपुर में एक मीटिंग हुई ओर सभी घरानों को तीन घरानों क्रमशः जयपुर घराना (राजपूत), लखनऊ घराना (नवाब), बनारस घराना (शिवजी) में बांटा गया। इसी प्रकार के छोटे-छोटे सभी बिन्दुओं पर आयुष कुमार ने बच्चों को बताया, उसके बाद प्रसिद्ध नृतक आयुष कुमार ने सभागार में उपस्थित सभी अतिथियों और विद्यार्थियों के सम्मुख मनमोहक नृत्य प्रस्तुत किया, आयुष कुमार की प्रस्तुति को देखकर सभागार करतल ध्वनी द्वारा गूजाएंमान रहा और पूरा सभागार आयुष कुमार के नृत्य पर मंत्रमुग्ध हो गया। 

                           अंत में प्रधानाचार्य डॉ0 प्रवेन्द्र दहिया ने सभागार में उपस्थित सभी अतिथियों को अपने बहुमूल्य समय में से नृत्य कार्यशाला के लिए समय निकालने के लिए आभार और धन्यवाद व्यक्त किया। धैर्यपूर्वक कार्यशाला में उपस्थित रहने वाले सभी विद्यार्थियों का उत्साहवर्धन किया और कार्यशाला में उपस्थित सभी अतिथियों को सम्मान प्रतीक देकर सम्मानित किया।नृत्य कार्यशाला को सफल बनाने के लिए समस्त स्टाफ का बहुमूल्य योगदान रहा। स्टाफ के योगदान के लिए भी प्रधानाचार्य डॉ0 प्रवेन्द्र दहिया ने सभी अध्यापकों का भी धन्यवाद किया।