ओजस्वी मन:-
त्वरित टिप्पणी:-
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पं.दीपक कृष्णात्रेय
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पिता की संपत्ति में बेटी के हक को लेकर 11 अगस्त,मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही अहम फैसला सुनाया है।कोर्ट ने कहा है कि बेटी भी पैतृक संपत्ति में बराबर की हकदार है और बराबरी के हक से उसे वंचित नही किया जा सकता।सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की व्याख्या करते हुए सुनाया है।बेटियों के हक में यह फैसला बेहद महत्वपूर्ण है।इससे बेटियों को समाज मे महत्वपूर्ण स्थान बनाने में मदद मिलेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बेटी हिन्दू अविभाजित परिवार की संपत्ति में बेटे के समान ही सहभागी है।बेटी चाहे हिन्दू उत्तराधिकार कानून ,1956 में हुए संशोधन से पहले पैदा हुई हो या बाद में,उसे बेटे के समान ही बराबरी का हक है।यह संशोधन 2005 में हुआ था।इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कि कानून में संशोधन के समय पिता जीवित थे या नही।यह मामला सुप्रीम कोर्ट के ही दो फैसलों प्रकाश बनाम फूलमती (2016) और दनाम्मा बनाम अमन (2018) के विरोधाभासी फैसलों के बाद व्यवस्था तय करने के लिये तीन न्यायाधीशों को भेजा गया था।मुद्दा यह भी था कि संशोधित कानून पूर्व से यानी संशोधन के पहले से लागू होगा या संशोधन के बाद से।सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त मंगलवार को दिये अपने फैसले में कहा है कि कानून लागू होने की तारीख 9 सितम्बर ,2005 से पहले पैदा हुई बेटी भी संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकती है।एक ही शर्त होगी कि वह संपत्ति 20 दिसम्बर 2004 से पहले किसी कानूनी बंधपत्र के द्वारा बिक्री,वसीयत या अन्य किसी तरह से समाप्त न कर दी गयी हो।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा,एस अब्दुल नजीर और एम आर शाह की पीठ ने फैसले में कहा,चूंकि बेटी को जन्म से संपत्ति पर अधिकार प्राप्त होता है। इसलिये संशोधित कानून लागू होने की तिथि को पिता का जीवित होना जरूरी नही है।फैसले में यह भी स्पष्ट किया गया है कि संपत्ति के मौखिक बंटवारे की कोरी दलीलें स्वीकार नही की जा सकती।कानून की धारा 6 (5) के मुताबिक संपत्ति का बंटवारा रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत रजिस्टर्ड डीड से होना चाहिये या फिर कोर्ट की डिक्री से ।अपवाद के मामले में संपत्ति बंटवारे की दलीले अन्य सहयोगी दस्तावेजी सबूतों के आधार पर स्वीकार की जा सकती हैं।बेटियों को पैतृक संपत्ति पर हक देने के हिन्दू उत्तराधिकार संशोधन कानून की व्याख्या करते हुए पूर्व में सुप्रीम कोर्ट की दो न्यायाधीशों की पीठ ने प्रकाश बनाम फूलमती केस में कहा था कि संशोधित कानून की धारा 6 पूर्व से लागू नही होगी।कोर्ट ने कहा था कि यह धारा तभी लागू होगी जबकि कानून संशोधन की तारीख को पिता और बेटी दोनों जीवित हों।
11 अगस्त,मंगलवार को तीन न्यायाधीशों की पीठ ने विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा के फैसले में प्रकाश बनाम फूलमती के फैसले में दी गयी इस व्यवस्था से असहमति जताते हुए कहा कि कानून संशोधन की तारीख पर पिता के जीवित होने की बात से वह सहमत नही हैं।कानून की धारा 6 (1)(ए) में बेटी को संपत्ति पर जन्म से अधिकार दिया गया है।पूर्व के धनम्मा के फैसले में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने कहा था कि कानून में बेटियों को अन्य सहभागियों की तरह ही संपत्ति पर पूर्ण अधिकार दिया गया है।बेटी भी अन्य सहभागियों की तरह संपत्ति का बंटवारा मांग सकती है।सुप्रीम कोर्ट ने ताजा फैसले में हिन्दू अविभाजित परिवार में बेटियों के पैतृक संपत्ति परहक के कानून पेंच से संबंधित व्यवस्था स्पष्ट करते हुए यह फैसला सुनाया है।कोर्ट ने कहा है कि बेटियों को कानून में मिले संपत्ति के हक से वंचित नही किया जा सकता है।कोर्ट का यह फैसला बेटियों के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से "बेटा बेटी एक समान " की धारणा को बल मिलेगा।बेटा बेटी में अंतर कर बेटियों को उनके हक से वंचित कर दिये जाने की सोच पर अंकुश लगेगा।इससे बेटियों को समाज मे उचित स्थान प्राप्त करने में मदद मिलेगी और बेटियां भी समान रूप से समाज की मुख्य धारा में आगे बढ़ सकेंगी।