फकीरी बाने में छिपा था अद्भुत एवं अद्वितीय व्यक्तित्व

*फकीरी बाने में छिपा था अद्भुत एवं अद्वितीय व्यक्तित्व, शिक्षाऋषि स्वामी कल्याणदेव*
ओजस्वी मन:- फकीरी वेश में रहकर ,सुख सुविधाओं से दूर एक संत ने समाज सेवा में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।उचित शिक्षा और चिकित्सा के अभाव में  जीवन यापन कर रहे लोगो के लिये निस्वार्थ भाव से कार्य कर समाज मे एक अमिट छाप छोड़ने वाले महान संत स्वामी कल्याणदेव की स्मृति आज भी लोगो के दिलो में ताजा है।
       सन 1876 ई0 में पावन गंगा यमुना की अन्तर्वेदी उत्तर प्रदेश के वर्तमान जनपद बागपत के गांव कोताना में एक कर्मशील एवं धर्मपरायण परिवार में उनके ननिहाल में हुआ था,जिनका बाद में पालन पोषण जनपद मुज़फ्फरनगर के अपने गांव मुंडभर में हुआ था।स्वामी कल्याणदेव बाल्यकाल में ही वैराग्य हो जाने के कारण घर से निकल गये और सम्पूर्ण देश का भृमण करते हुए उत्तराखंड पहुंचकर परमपूज्य स्वामी श्री पूर्णानंद जी महाराज को गुरु के रूप में धारण किया।सन 1990 में ऋषिकेश में स्वामी पूर्णानंद ने सन्यास की दीक्षा प्रदान करने के बाद स्वामी कल्याणदेव नाम दिया।गुरु की आज्ञा से स्वामी कल्याणदेव ने उत्तराखंड में रहकर ही शास्त्रों का अध्ययन किया।
       शुकपीठ पीठाधीश्वर पूज्य स्वामी ओमानंद सरस्वती जी महाराज ने बताया कि जब पूज्य स्वामी कल्याणदेव देश भ्रमण कर रहे थे उस समय उन्हें पराधीन देश मे सामाजिक जीवन स्तर के बहुत से ऐसे कटु अनुभव हुए जिन्होंने उन्हें झकझोर कर रख दिया।जिससे स्वामी कल्याणदेव जी के मन मे नयी चेतना जागृत हो गयी।स्वामी कल्याणदेव जी ने अनुभव किया कि देश मे बड़ी गरीबी है।शिक्षा और चिकित्सा का अभाव है।और भी बहुत सी सामाजिक बुराइयां और कुरीतियां चारो ओर फैली है।स्वामी कल्याणदेव जी ने इन बुराइयों को दूर करने के लिये शिक्षा और चिकित्सा के उत्थान हेतु कार्य करने का निश्चय कर लिया।यह सेवा भाव स्वामी जी के मन मष्तिष्क में प्रतिष्ठित हो गया।उनका मानना था कि जब देश के नागरिक शिक्षित और स्वस्थ होंगे तब सभी समस्याएं दूर हो सकेंगी और देश उन्नत होगा।स्वामी कल्याणदेव जी ने त्याग और तपस्यामय जीवन व्यतीत करते हुए शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में निःस्वार्थ समाजसेवा करने का निर्णय लिया और इसे ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाकर आगे बढ़े। 
     अद्वितीय व्यक्तित्व और अदम्य साहस के धनी इस महान संत ने देश,समाज एवं मानवता और उससे बढ़कर ग्रामीण गरीब जनता की निःस्वार्थ सेवा में एक शताब्दी पूर्ण कर ली थी।अपनी 129 वर्ष की अवस्था के 100 वर्ष के सेवा काल मे श्री स्वामी जी ने भारत मे राष्ट्रीय महत्व की लगभग तीन सौ संस्थाएं स्थापित की।इनमें तकनीकी शिक्षा, आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज,कृषि कॉलेज,कृषि विज्ञान केंद्र,आयुर्वेद अनुसंधान केंद्र,डिग्री कॉलेज, इंटर कॉलेज, माध्यमिक विद्यालय,नवोदय विद्यालय, कन्या विद्यालय, जूनियर हाईस्कूल, प्राथमिक विद्यालय,चिकित्सालय एवं औषधालय,नेत्र चिकित्सालय एवं संस्कृत पाठशालाएं,उद्योगशाला,अम्बेडकर छात्रावास,धर्मशालाएं,मूक बधिर एवं अंध विद्यालय, योग प्रशिक्षण केंद्र,वृद्ध आश्रम ,वृद्धा गौशालाएं,अनाथालय,शहीद स्मारक तथा अनेक आध्यात्मिक एवं धार्मिक केंद्र तथा उद्योग केंद्र आदि प्रमुख है।
     राष्ट्रसेवा को समर्पित इस संत से भारत के उस दौरान के राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री तथा सभी प्रमुख हस्तियों ने भेंट की तथा उनके व्यक्तित्व पर मुग्ध हुए बिना नही रह सके।स्वामी जी ने शुकदेवजी की तपस्थली शुक्रताल का जीर्णोद्धार कर उसे सुंदर तीर्थ का रूप प्रदान किया।
    प्रथम शुद्ध श्रावण कृष्ण एकादशी व द्वादशी,बुधवार के अनुसार 14 जुलाई 2004 को पृथ्वी का यह महान संत तीन सदियों का अनुभव कर ब्रह्मलीन हो गये।
            ऐसा अद्भुत व्यक्तित्व सदियों में कभी कभी ही जन्म लेता है और समाज को एक नई दिशा देकर,समाज सेवा और संतत्व का एक नया आदर्श स्थापित करता है।हम ऐसी महान विभूति को नमन करते है।